बाबासाहब आंबेडकर जब कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद भारत लोटे तो बड़ौदा के महाराजा ने उन्हें बड़ौदा राज्य के लेजिस्लेटिव असेंबली का सदस्य बनाया,. बड़ोदा के राजा को उस समय के शासकों में सबसे बड़ा समाज सुधारक माना जाता था। डॉ. बी आर आंबेडकर पर भी उसका काफी प्रभाव पड़ा।

संविधान निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर को वंचितों, गरीबो और शोषितों का मसीहा बनाने में बड़ौदा के राजपरिवार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। बड़ौदा के तत्कालीन महाराजा सायाजीराव गायकवाड़ ने अंबेडकर की उस वक्त मदद की, जब उनके सामने आगे पढ़ाई करने का संकट खड़ा हो गया था। आइए हम आपको जानकारी देते हैं कि बड़ौदा के राजा ने एक दलित को कैसे करोड़ों लोगों का मसीहा बना दिया। महाराज के अंबेडकर के साथ हमेशा मधुर संबंध रहे। अंबेडकर का दलितों के उत्थान में बहुत बड़ा हाथ रहा है। वहीं बड़ौदा के महाराजा ने अंबेडकर को अपना उद्देश्य पूरा करने में पूरी मदद की।

अंबेडकर की विदेश में पढ़ाई करने में की मदद

आंबेडकर का जीवन गरीबी में बीता था। इसी के साथ उन्होंने बचपन से जाति के आधार पर काफी भेदभाव झेला था। आंबेडकर जब युवा थे और वो उच्च एजुकेशन के लिए विदेश जाना चाहते थे। लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे। ऐसे में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने में बड़ौदा के तत्कालीन महाराजा सायाजीराव गायकवाड़ तृतीय ने उनकी सम्पूर्ण आर्थिक मदद की।

आंबेडकर ने साल 1913 में विदेश में पढ़ाई करने के लिए उनके पास आर्थिक मदद का आवेदन भेजा। उनके आवेदन को स्वीकार करते हुए उन्होंने आंबेडकर को सालाना स्कॉलरशिप देने का फैसला लिया। इस तरह आंबेडकर का विदेश में पढ़ने का सपना साकार हो गया।

एक स्वाभिमानी घटना से उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी

सितंबर, 1917 में अपनी छात्रवृत्ति की अवधि समाप्त होने पर बाबासाहेब शहर लौट आए और एक व्यापारी के यहां नौकरी करने लगे। लेकिन शहर में थोड़े ही समय नवंबर, 1917 तक रहने के बाद व्यापारी सेठ द्वारा अस्पृश्यता के कारण अपने साथ हुए दुर्व्यवहार ने उन्हें नौकरी छोड़ने के लिए विवश कर दिया और वह फिर बम्बई रवाना हो गए।

महत्वपूर्ण कार्य

15 अगस्त, 1936 को उन्होंने दलित वर्गों के हितों की रक्षा के लिए स्वतंत्र लेबर पार्टी का गठन किया, जिसमें ज्यादातर श्रमिक वर्ग के लोग शामिल थे।

1938 में कांग्रेस ने अस्पृश्यों के नाम में परिवर्तन करने वाला एक विधेयक पेश किया। डॉ. अंबेडकर ने इसकी आलोचना की। उनका दृष्टिकोण था कि नाम बदलना समस्या का स्थाई समाधान नहीं है।

आंबेडकर को बड़ोदा राज्य में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी

आंबेडकर जब कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद भारत लोटे तो बड़ौदा के महाराजा ने समानता की मिसाल पेश करते हुए उन्हें बड़ौदा राज्य के लेजिस्लेटिव असेंबली का सदस्य बनाया तथा डॉ. बी आर अम्बेडकर को अपना सैन्य सचिव भी नियुक्त किया गया।बड़ोदा के राजा को उस समय के शासकों में सबसे बड़ा समाज सुधारक माना जाता था। आंबेडकर पर भी उसका काफी प्रभाव पड़ा। संविधान के निर्माण के समय आंबेडकर की सोच में भी ये नजर आया।

दरअसल उस समय महाराजा ने अपने शासनकाल के दौरान राज्य में अनुसूचित जाति के लोगों के चुनाव लड़ने का कानून बनाया। इसके अलावा उन्होंने आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों के साथ-साथ महिलाओं और पिछड़े वर्ग के लिए कई योजनाएं भी चलाईं।

महाराजा से हमेशा रहे मधुर संबंध

बड़ौदा के महाराजा सायाजीराव गायकवाड़ का निधन आजादी से 8 साल पहले साल 1939 में हो गया था। लेकिन जब तक वो जिंदा रहे, उनके भारत रत्न डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के साथ काफी मधुर संबंध रहे। उन्होंने साल 1875 से लेकर 1939 तक बड़ौदा का शासन संभाला। उन्होंने अपने शासनकाल में महिलाओं की शिक्षा के लिए कई कदम उठाए। उनके समय लड़कियों के लिए प्राइमरी एजुकेशन फ्री थी। उन्होंने अपने शासनकाल में लड़कियों के लिए कई स्कूलों का निर्माण करवाया।

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